वही है बुद्ध
जीत लिया जिसने
जीवन युद्ध !
शिखरों तक
किसको पहुँचाया
बैसाखियों ने !
इच्छाएँ तट
ज़िन्दगी एक नदी
आशा की नाव !
यह संसार
उसका ही जिसने
बाँटा है प्यार !
वही है सार
कर्म भूमि केवल
यह संसार !
संसार ऐसा
जैसा तुम बोओगे
उगेगा वैसा !
प्रेम लुटाओ
गोल है यह पृथ्वी
वापस पाओ !
ठूँठ हो रही
खुशहाल ज़िन्दगी
पेड़ खोकर !
पूछती रही
मानवता का पता
व्याकुल नदी !
किसने सुनी
उनकी फरियाद
बेचारे पेड़ !
धूप सहते
सुखद छाया देते
संत हैं वृक्ष !
हरे पेड़ों से
करने लगे लोग
काली कमाई !
कटे जब से
हरे-भरे जंगल
उगी बाधाएँ !
बढ़ता ताप
घटती हरियाली
प्रगति-भ्रम !
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बहुत अच्छी और प्रभाऽशाली हाइकु कविताएँ हैं ठकुरेला जी की, वधाई ।
ReplyDelete-डा० जगदीश व्योम
कल 19/06/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
पुन: मेरे द्वारा ही
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 25 नवम्बर 2017 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
बहुत सुंदर ।।
ReplyDeleteप्रेम लुटाओ
ReplyDeleteगोल है यह पृथ्वी
वापस पाओ !
Wahhhhh। बहुत ख़ूब
एक से बढ़कर एक भाव -- बहुत खूब !!!!
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