Saturday, May 28, 2011

हाइकु कविताएँ

वही है बुद्ध
जीत लिया जिसने
जीवन युद्ध !




शिखरों तक
किसको पहुँचाया
बैसाखियों ने !



इच्छाएँ तट
ज़िन्दगी एक नदी
आशा की नाव !



यह संसार
उसका ही जिसने
बाँटा है प्यार !



वही है सार
कर्म भूमि केवल
यह संसार !



संसार ऐसा
जैसा तुम बोओगे
उगेगा वैसा !




प्रेम लुटाओ
गोल है यह पृथ्वी
वापस पाओ !




ठूँठ हो रही
खुशहाल ज़िन्दगी
पेड़ खोकर !



पूछती रही
मानवता का पता
व्याकुल नदी !



किसने सुनी
उनकी फरियाद
बेचारे पेड़ !



धूप सहते
सुखद छाया देते
संत हैं वृक्ष !



हरे पेड़ों से
करने लगे लोग
काली कमाई !



कटे जब से
हरे-भरे जंगल
उगी बाधाएँ !



बढ़ता ताप
घटती हरियाली
प्रगति-भ्रम !



- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

6 comments:

  1. बहुत अच्छी और प्रभाऽशाली हाइकु कविताएँ हैं ठकुरेला जी की, वधाई ।

    -डा० जगदीश व्योम

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  2. कल 19/06/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. पुन: मेरे द्वारा ही

    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 25 नवम्बर 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. प्रेम लुटाओ
    गोल है यह पृथ्वी
    वापस पाओ !

    Wahhhhh। बहुत ख़ूब

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  5. एक से बढ़कर एक भाव -- बहुत खूब !!!!

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